चंद्रिका पटेल: पढ़ाई के सपनों से लेकर घर के हाथों हुई हत्या — बनास कांठा (गुजरात) का दर्दनाक केस

चंद्रिका पटेल
चंद्रिका पटेल

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परिचय — एक नन्हीं जिंदगी का संक्षिप्त परिचय

25 जून 2025: गुजरात के बनास कांठा डिस्ट्रिक्ट में दंतिया गांव में रह रहे सेंधा भाई पटेल के लिए यह पल बहुत ही दुखदाई था क्योंकि वह अपने हाथों से अपनी 18 साल की बेटी चंद्रिका पटेल की चिता को आग देकर आए थे। ऐसे मातम के माहौल में शामिल होने आए पड़ोसी, नाते-रिश्तेदारों और गांव वालों ने जब चंद्रिका पटेल की मौत की वजह जानना चाही तो सेंधा भाई ने बताया कि उनकी बेटी हार्ट अटैक से खत्म हो गई है।

क्योंकि देश में कम उम्र के लोगों के हार्ट अटैक से डेथ के इंसिडेंट्स इतने कॉमन हो चुके हैं कि इस बात पर यकीन करने में किसी को मुश्किल भी नहीं हुई। एक मां-बाप के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होता है कि उनके जीते जी उनकी औलाद उनकी आंखों के सामने से गुजर जाए, और इस केस में तो चंद्रिका की उम्र वैसे भी बहुत कम थी।

जिंदगी में मिले इस घाव के दर्द को बढ़ा रहा था यह ख्याल कि 11 दिन पहले ही चंद्रिका पटेल ने अपने करियर की नीव रखी थी। पढ़ाई लिखाई में होनहार चंद्रिका पटेल का 14 जून 2025 को नीट एग्जाम का रिजल्ट आया था जिसमें उसने 478 स्कोर किया था, जो उसके लास्ट ईयर के 380 के स्कोर से कहीं बेहतर था। चंद्रिका अपने इस रिजल्ट से काफी खुश थी क्योंकि उसे विश्वास था कि इस स्कोर से उसे कॉलेज में एडमिशन मिल जाएगा।

जिससे वह डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा कर पाएगी। लेकिन जिंदगी के इम्तिहान में मौत कब उसके सपनों के साथ उसकी जिंदगी को कुचल कर चली जाएगी, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। पर देखने में यह एक नेचुरल ट्रेजडी लग रही थी, जहां एक मौत हुई, सपने चकनाचूर हुए, और माता-पिता से उनकी औलाद छीन गई।

चंद्रिका और हरेश की पहली मुलाकात

21 फरवरी 2025, पालनपुर, गुजरात। पालनपुर के बस स्टैंड पर खड़ी चंद्रिका पटेल हॉस्टल वापस लौटने के लिए बस के आने का वेट कर रही थी। चंद्रिका पालनपुर में नीट एग्जाम की तैयारी करने के लिए आई थी और वहां एक हॉस्टल में रह रही थी। उस दिन बहुत देर तक बस का इंतजार करते-करते जब कोई बस नहीं आई तो ढलती शाम और होते अंधेरे के बीच चंद्रिका के पास लिफ्ट मांगने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा था।

चंद्रिका पटेल लिफ्ट मांग ही रही थी कि तभी वहां बाइक से गुजर रहे 23 साल के हरेश चौधरी ने चंद्रिका को लिफ्ट मांगते देख अपनी गाड़ी रोक दी। चंद्रिका ने हरेश को अपनी सिचुएशन बताई जिस पर हरेश ने उसे सेफली हॉस्टल पहुंचाने का अश्योरेंस देते हुए लिफ्ट दे दी। अपनी गट फीलिंग से चंद्रिका पटेल को हरेश एक डिसेंट लड़का लग रहा था, और हॉस्टल से बस स्टॉप की लंबी दूरी के बीच हुई दोनों की बातचीत ने चंद्रिका के दिल में हरेश के लिए एक अच्छी इमेज बना दी थी, और ना सिर्फ चंद्रिका पटेल बल्कि हरेश को भी यह एक पुराने कनेक्शन जैसा लगने लगा।

नतीजा, हॉस्टल आते-आते दोनों ने एक-दूसरे से अपने मोबाइल नंबर्स एक्सचेंज कर लिए। बस स्टॉप में यूं दोनों का मिलना कोई कोइंसिडेंस नहीं बल्कि नियति में लिखी उनकी कहानी का एक हिस्सा था क्योंकि इसके बाद से ही दोनों एक-दूसरे से कभी मैसेज तो कभी कॉल पर ढेर सारी बातें करने लगे और यही बातें फिर मुलाकात और मुलाकात से प्यार में तब्दील हो गईं।

रिश्ता, भागना और लिव-इन — अहमदाबाद से राजस्थान तक का सफर

हरेश
हरेश

18 साल की चंद्रिका पटेल और 23 साल के हरेश दोनों के बीच शुरू हुई इस रिलेशनशिप में हरेश ने अपने पास्ट को चंद्रिका पटेल से छुपाया नहीं और उसने चंद्रिका पटेल को बता दिया कि वह शादीशुदा है और उसका एक बच्चा भी है। लेकिन रिलेशन बिगड़ने के चलते अब वह अपनी पत्नी के साथ नहीं रहता है और ना ही उसका अपनी पत्नी से कोई संबंध बाकी है। हरेश की इसी सच्चाई से चंद्रिका ना सिर्फ उससे और प्यार करने लगी बल्कि उस पर विश्वास भी करने लग गई थी।

गुजरते वक्त के साथ दोनों इस गहराते प्यार के बीच जिंदगी भर साथ निभाने का वादा भी कर बैठे। दोनों साथ में घूमने फिरने भी लगे। कभी वह माउंट आबू गए तो कभी महसना घूमने चले गए। लाइफ के इस फेज से चंद्रिका बहुत खुश थी। वह दिन भर नीट एग्जाम की तैयारी करती और शाम को फ्री टाइम में हरेश के साथ वक्त बिताती। पर जहां सब कुछ सही चल रहा था, वहां 3 महीने बाद खेले गए एक दांव ने चंद्रिका की जिंदगी के किताब के पन्नों को उसकी जिंदगी के आखिरी पलों में तब्दील कर दिया।

चंद्रिका पटेल का गायब होना और पुलिस की तलाश

3 महीने बाद 5 जून 2025 को परेशान हालत में चंद्रिका का परिवार गुजरात के थराड पुलिस स्टेशन जाता है और बताता है कि उनकी बेटी चंद्रिका पटेल मिल नहीं रही है। चंद्रिका के पिता सेंधाई बताते हैं कि चंद्रिका पटेल 1 महीने पहले नीट एग्जाम देने आई थी और तब से वह अपने घर पर ही रुकी हुई थी और कल यानी 4 जून 2025 को वह घर के काम से बाहर तो गई थी पर तब से वापस नहीं लौटी है।

चंद्रिका पटेल का फोन भी नहीं लग रहा है, और दोस्त-नाते रिश्तेदारों को भी चंद्रिका की कोई खबर नहीं है। घर के आसपास के इलाके, मार्केट, और जहां-जहां चंद्रिका जा सकती है, वे उन हर जगहों पर भी उसे ढूंढ चुके हैं, पर चंद्रिका का कोई सुराग नहीं मिला है। किडनैपिंग की आशंका से पुलिस ने तुरंत मिसिंग केस दर्ज किया और चंद्रिका का फोन साइलेंस पर लगाकर उसकी खोज करना शुरू कर दिया।

पुलिस की भूमिका और पहले विवाद

पुलिस की फुर्ती का उन्हें फायदा भी मिला, और 2 दिन बाद, 6 जून 2025 को, चंद्रिका पटेल के फोन की लोकेशन गुजरात के अहमदाबाद में दिखाने लगी। लेकिन जब तक पुलिस की टीम वहां पहुंचती, तब तक चंद्रिका का फोन अलग-अलग लोकेशंस में मूवमेंट करते हुए दिखने लगा और कुछ घंटों बाद उसकी लोकेशन राजस्थान के उदयपुर में दिखाने लगी। यह मूवमेंट उदयपुर पर ही नहीं रुकी, बल्कि उदयपुर से उज्जैन, उज्जैन से ग्वालियर, ग्वालियर से जयपुर और फिर 10 जून को राजस्थान के बालासार में दिखाने लगी।

जिसके बाद चंद्रिका की लोकेशन में हलचल होना बंद हो गया। इसलिए 12 जून की रात 10:00 बजे ब्लैक स्कॉर्पियो से पुलिस की दो टीमें चंद्रिका के भाई हीरा भाई के साथ बालासाहार रिसॉर्ट पहुंच गईं, जहां रिसॉर्ट के एक रूम में पुलिस को चंद्रिका के साथ हरेश मिल गया। अपनी बहन को एक लड़के के साथ देख हीरा गुस्से में भड़क उठा।

हालांकि कानूनन दोनों बालिग थे, लेकिन साथ आई पुलिस ने दोनों के फोन को सीज करते हुए चंद्रिका और हरेश को अलग-अलग कार में बिठा दिया। जहां से चंद्रिका को उसके घर भेज दिया गया और हरेश को थराड पुलिस स्टेशन ले जाया गया। बीइंग अ ड्राई स्टेट गुजरात में अल्कोहल के बिना परमिट कंजम्शन, पोजेशन और सेल पर बैन है, और इसी नियम को तोड़ने के चलते हरेश पर काफी पहले केस दर्ज हुआ था।

जो पुलिस को पुराने रिकॉर्ड्स खंगालने में मिल गया और इसी पुराने प्रोहिबिटेड लेकर केस के बेसिस पर उन्होंने उसे जेल में डाल दिया। अगले दिन 13 जून 2025 को पुलिस के सामने चंद्रिका ने स्टेटमेंट दिया कि वो अपनी फैमिली के साथ रहना चाहती है ना कि हरेश के साथ और इसी स्टेटमेंट को रिकॉर्ड कर पुलिस ने केस को क्लोज कर दिया। केस की फाइल को जितनी शांति से बंद किया गया था उसी जगह से एक ऐसा तूफान उठने वाला था जो कई जिंदगी तबाह करने जा रहा था।

हरेश की कानूनी लड़ाई और मौत का खुलासा

चंद्रिका पटेल
चंद्रिका पटेल

21 जून 2025 को हरेश ने जेल से बेल पर बाहर आते ही अपने लॉयर की मदद से हाई कोर्ट में हेबियस कॉर्पस पिटीशन फाइल की। हेबियस कॉर्पस यह इंश्योर करता है कि किसी भी इंसान की पर्सनल लिबर्टी बिना कानूनी वजह के नहीं छीनी जा सकती। आसान भाषा में समझे तो हेबियस कॉर्पस एक ऐसा कोर्ट का हुकुम है जो पुलिस या किसी भी अथॉरिटी से कहता है कि अगर तुमने किसी को रोक कर या कैद कर रखा है तो उसे सामने लेकर आओ और सबूत दो कि तुमने ऐसा लीगली कर रखा है और अगर तुम वैलिड वजह नहीं दे पाए तो तुम्हें उसको तुरंत रिहा करना होगा। .

कोर्ट ने पिटीशन अप्रूव करते हुए 27 जून की हियरिंग फिक्स की जिसमें पटेल परिवार को चंद्रिका के साथ कोर्ट में पेश होना था। लेकिन चंद्रिका से मिलने के अरमान लिए हरेश की दुनिया एक पल में तब बिखर गई जब पटेल परिवार के वकील ने चंद्रिका की जगह उसका डेथ सर्टिफिकेट पेश कर दिया जिसमें कॉज ऑफ डेथ हार्ट अटैक लिखा हुआ था।

यह सुनते ही हरेश अंदर से शून्य सा हो गया और कोर्ट ने डेथ सर्टिफिकेट की लीगलिटी को चेक करते हुए इस केस को डिस्पोज कर दिया। हरेश को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि चंद्रिका इस दुनिया में नहीं रही। इसलिए सच्चाई जानने के लिए वह चंद्रिका के घर के आसपास उसके बारे में पता लगाने लग गया, जहां सब ने उसे यही बताया कि 25 जून को उसकी मौत हार्ट अटैक से हुई थी।

लेकिन कहीं ना कहीं उसका दिल यह मानने को तैयार नहीं था। इसलिए उसने पुलिस स्टेशन जाकर पटेल परिवार के खिलाफ कंप्लेंट दर्ज करवाई और यह आरोप लगाया कि चंद्रिका का उन्होंने मर्डर कर दिया है। 1 महीने बाद 31 जुलाई को एसपी अक्षय राज मकवाना ने इन्वेस्टिगेशन के आर्डर दिए और अगले दिन एएसपी सुमन ने इस केस की कमान अपने हाथों में ले ली।

Investigation काफी मुश्किल थी क्योंकि ना कोई सीसीटीवी था और ना ही फोन लोकेशन से कोई क्लू। इसलिए पुलिस ने चंद्रिका के परिवार को बुलाकर पूछताछ शुरू की, जिसमें चंद्रिका के चाचा शिवराम और कजिन नारन से भी पूछताछ की गई। पूछताछ के दौरान परिवार के बयानों में पुलिस को कुछ गड़बड़ नजर आई। तब पुलिस ने हरेश का दिया एक ऐसा सबूत उनके सामने रखा जिसे देखते ही शिवराम और नारंग का सब्र टूट गया और

उन्होंने चंद्रिका की जिंदगी में परिवार की सनक और कानून की मिलीभगत से छुपे उस दर्दनाक राज को बयां करना शुरू किया।

परिवार की साजिश और चंद्रिका का भागना

4 मई 2025 को नीट एग्जाम देने के लिए घर आई चंद्रिका एग्जाम देकर अब वापस अपने हॉस्टल जाने की तैयारी में लग गई थी। हालांकि उसके घर वालों ने चंद्रिका के लिए अलग ही प्लान बना रखे थे। एक दिन बाद यानी 5 मई को पटेल परिवार चंद्रिका को उसके कजिन की शादी में लेकर गए। लेकिन उनका असली पर्पस इस शादी को अटेंड करना नहीं बल्कि चंद्रिका को उसके कजिन की वाइफ के भाई को दिखाना था।

ताकि वह उससे चंद्रिका की शादी की बात चला सके। चंद्रिका को जब इसकी भनक लगी तो उसका मन बैठ गया क्योंकि उसने तो डॉक्टर बन हरेश के साथ शादी करने के सपने सजा रखे थे। शायद इन बीते समय में वह यह भूल गई थी कि उसका परिवार किस विचारधारा का था। पूर्व सरपंच रहे सेंधाबाई पटेल स्ट्रिक्ट और ओल्ड आईडियोलॉजी से इन्फ्लुएंस थे।

उन्होंने भले ही चंद्रिका को पढ़ाई-लिखाई के लिए बाहर भेज दिया था, पर वे चाहते थे कि उनकी बेटी उनके मन मुताबिक लड़के से ही शादी करे। शादी की बात चलने के बाद से चंद्रिका के बदले हावभाव और रिएक्शन से उसके परिवार को किसी लड़के से अफेयर चलने का शक होने लगा। वैसे तो बेटियां अपने पिता के सबसे ज्यादा करीब होती हैं।

पर इन रूढ़िवादी सोच से घिरे सेना भाई को चंद्रिका का किसी लड़के से प्यार करना धोखे जैसा महसूस हो रहा था। उन्हें लगने लगा कि जिस भरोसे से उन्होंने अपनी बेटी को बाहर पढ़ने भेजा था, वही भरोसा उसने तोड़ दिया था। अपनी बेटी से ज्यादा समाज की फिक्र करने वाले सिंधा भाई को समाज के तानों का डर सताने लगा और इसी वजह से वह चंद्रिका पर बंदिशें लगाने लगे।

कभी वह कुछ दिन के लिए उसका फोन अपने पास रख लेते तो कभी घर से निकलने में रोक लगा देते। इतना ही नहीं, वे चंद्रिका पर जोर डालने लगे कि वह उनकी मर्जी के लड़के से ही शादी करेगी। आखिरकार चंद्रिका ने परिवार के इन बेमतलब की बंदिशों से परेशान होकर अपनी मर्जी और अपने पसंद के लड़के से शादी करने की बात घर वालों के सामने रख दी।

अब ऐसे में समाज की दुहाई लेकर वे रिश्तेदार आ गए जो आग में घी डालने का काम करते हैं। चंद्रिका के चाचा शिवराम ने तो ताने मारे कि उन्होंने सबको पहले ही चेतावनी दी थी कि आजकल लड़कियां कॉलेज जाकर बॉयफ्रेंड बनाती हैं और फिर उनके साथ वे घर से भागकर शादी कर लेती हैं। इन सब तानों का असर सिंधा भाई पर इस कदर हुआ कि उन्होंने चंद्रिका की पढ़ाई पर पूरी तरह से रोक लगा दी और उस पर शादी करने का दबाव डालने लगे।

ना उसे कोचिंग और ना ही वापस कॉलेज जाने दिया गया। जबकि एग्जाम के बाद चंद्रिका को हॉस्टल वापस लौटना था। चंद्रिका को उसके सपने आंखों के सामने बिखरते हुए दिख रहे थे। परेशान हालत में यह सारी बातें चंद्रिका ने हरेश को Instagram पर मैसेज करके बताई और कहा कि वह सिर्फ उसके साथ ही जिंदगी बिताना चाहती है।

15-20 दिन बाद हरेश और चंद्रिका ने फाइनली साथ में भागने का प्लान बनाया। 4 जून 2025 को चंद्रिका सबकी नज़रों से बचते हुए चुपके से हरेश के साथ अहमदाबाद निकल गई, जहां दोनों ने अहमदाबाद मिर्जापुर कोर्ट में लिव-इन एग्रीमेंट फाइल कर दिया। पेपर वर्क पूरा होने के बाद दोनों उदयपुर, उज्जैन, ग्वालियर, और जयपुर घूमते हुए राजस्थान के बालासौर के एक रिसॉर्ट में रुक गए।

जहां उन्होंने उसी शहर में सेटल होकर परिवार के साथ बातें सुलझाने की कोशिश करने का फैसला लिया। उधर चंद्रिका की फैमिली ने मिसिंग कंप्लेंट दर्ज करवा रखी थी। लेकिन असल में तो चंद्रिका अपनी मर्जी से हरेश के साथ गई हुई थी।

बट लोकेशन का पता चलते ही जब पुलिस चंद्रिका पटेल के भाई हीराबाई के साथ उस रिसॉर्ट पहुंची तो उन्होंने बिना वारंट के उन दोनों के फोन को जब्त कर लिया और उन्हें अलग करते हुए सेना भाई के इन्फ्लुएंस में जबरदस्ती चंद्रिका को उसके घर वापस भेज दिया।

गाड़ी में चंद्रिका बार-बार कह रही थी कि मुझे अपने परिवार के साथ नहीं जाना। मुझे हरेश के साथ ही रहना है। पर बालिग होते हुए भी उसकी एक नहीं सुनी गई। पुलिस ने उसे उसी घर में छोड़ दिया जहां से वह अपनी मर्जी से निकली थी। सेनाबाई पटेल के प्रेशर में पुलिस ने हरेश के खिलाफ पुराने रिकॉर्ड्स खोदने शुरू किए और जब उन्हें कुछ बड़ा हाथ नहीं लगा तो उन्होंने उसके पुराने प्रोहिबिटेड लिखकर केस के चार्जेस को उठाकर उसे जेल भेज दिया।

सिंस पुलिस को यह केस क्लोज करना था, इसलिए 13 जून 2025 को पुलिस चंद्रिका को स्टेटमेंट रिकॉर्ड करने के लिए स्टेशन बुलाती है। लेकिन चंद्रिका पटेल एक ही बात कहती है कि उसे हरेश के साथ ही रहना है। पर पुलिस चंद्रिका की मदद करने की बजाय सेंधाभाई पटेल के साथ मिलकर चंद्रिका पर ही दबाव बनाने लगती है और कहती है कि अगर उसने अपना स्टेटमेंट नहीं बदला तो उसकी ज़िद का खामियाजा हरेश को भुगतना पड़ेगा।

क्योंकि वह उस पर फर्जी केस डालकर उसे हमेशा के लिए जेल में सड़ा देंगे। आखिरकार यह पैतरा काम कर जाता है और दिनभर मिली धमकियों से टूटकर चंद्रिका हरेश की फिक्र करती है और उसे बचाने के लिए मन मारकर यह स्टेटमेंट देती है कि वह अपनी फैमिली के साथ रहना चाहती है।

अगले दिन 14 जून 2025 को चंद्रिका का नीट का रिजल्ट आया जिसमें उसने अच्छा स्कोर किया था और उसे यकीन था कि उसको कोई ना कोई कॉलेज मिल ही जाएगा। पर जिस सफलता पर एक पिता को गर्व होना चाहिए था, वहां पर तो वह इसे अपनी बेटी की आजादी का रास्ता मान रहा था और उसे डर था कि इस पर चलकर वह उसकी इज्जत को मिट्टी में मिला देगी।

पुलिस की गलतियां और हरेश की खोज

7 दिन बाद यानी 21 जून को जेल से बेल पर बाहर आते ही हरेश ने पुलिस से अपना फोन लिया। लेकिन फोन ऑन करते ही वह शॉक्ड रह गया क्योंकि उसका फोन पूरी तरह से रिसेट हो चुका था। पहले तो पुलिस ने बिना कोर्ट ऑर्डर, बिना वारंट उसका फोन फोर्सफुली एविडेंस के नाम पर ले लिया था। और अगर इसे एविडेंस माना भी जाता तो भी उसे टेम्पर करना कानून के खिलाफ है।

कॉन्स्टिट्यूशन का आर्टिकल 21 राइट टू प्राइवेसी देता है जिसमें फोन को एक प्राइवेट स्पेस माना जाता है और उसमें मौजूद डाटा को हटाना या फोन को रिसेट करना गलत और इललीगल है। लेकिन यहां पुलिस तो कानून से नहीं, सेनाबाई पटेल के बनाए नियम से चल रही थी।

जेल से बाहर आते ही हरेश को चंद्रिका की फिक्र सताने लगी, और हरेश ने तुरंत इंस्टा लॉग इन किया ताकि चंद्रिका से वह कांटेक्ट कर सके। ऐसे में उसने देखा कि 17 जून 2025 को चंद्रिका ने उसे कई मैसेजेस लिखे थे। चंद्रिका पटेल ने लिखा था कि उसके घर वाले उसकी मर्जी के खिलाफ जाकर उसकी शादी करवाने के लिए उसे फोर्स कर रहे हैं।

पर वो सिर्फ उससे ही शादी करना चाहती है, और वो चाहती है कि हरेश उसे यहां से ले जाए, और अगर वह परिवार के अकॉर्डिंग शादी नहीं करेगी तो उसके घर वाले उसे मार डालेंगे। यही वो पल था जहां से चंद्रिका की जिंदगी के आखिरी पन्ने लिखने शुरू हो गए थे, क्योंकि जब पुलिस ने यह मैसेज चंद्रिका के चाचा शिवराम और कजिन नारन को दिखाया तो उन्होंने 24 जून की रात के सन्नाटे में छुपे एक डरावने राज का पर्दाफाश करना शुरू किया।

24 जून 2025 को पुलिस सेंधाभाई पटेल को हिवियस कॉर्पस पिटीशन की नोटिस देने आई थी, जिसमें उसे अपनी बेटी चंद्रिका को 3 दिन बाद यानी 27 जून को कोर्ट में पेश करना था। इस बात से वाकिफ होते ही सेंधाभाई भाई को डर लगने लगा कि कहीं उसकी बेटी कोर्ट में उसके खिलाफ गई तो वह उस लाइन को क्रॉस कर देगी जो नाकाबिले बर्दाश्त होगी।

अपनी ईगो, झूठी इज्जत और शान को बिखरते हुए देख उसने शिवराम के साथ मिलकर यह फैसला किया कि आज वो चंद्रिका पटेल को आखिरी बार समझाएंगे और अगर वह नहीं मानी तो उसे जान से मार डालेंगे। शिवराम ने इस प्लान में अपने बेटे नारन को भी शामिल किया। इसी रात तीनों ने मिलकर चंद्रिका पटेल को हर तरीके से समझाने की कोशिश की।

लेकिन जब उसने उनके आगे झुकने से मना कर दिया, तो उस पर प्लान के तहत उन लोगों ने सिडेटिव को छुपाकर दूध में मिलाकर उसे पिला दिया। दवाई के असर के चलते चंद्रिका अपने कमरे में जाकर सो गई। जब रात में परिवार के बाकी लोग सो रहे थे, तो करीबन 1:30 बजे सेंधाबाई और शिवराम चंद्रिका के कमरे में दाखिल हुए, और फिर चंद्रिका पटेल को गहरी नींद में सोता हुआ देख सेंधाबाई ने अपने हाथों से अपनी ही बेटी का बेदर्दी से गला घोट दिया।

चंद्रिका पटेल की जान लेने के बाद उसने नारन और शिवराम के साथ मिलकर बॉडी को घसीटकर स्टोर रूम में लेकर आया और गले में दुपट्टा बांधकर उसे पंखे से लटका दिया। अपनी साजिश को छुपाने के लिए तीनों अपने कमरों में सो जाने का नाटक करने लगे। सुबह 4:00 बजे तीनों ने स्टोर रूम में जाकर शोर मचाया और बाकी परिवार के सामने यह ड्रामा रच दिया कि चंद्रिका उन्हें वहां पर मरी हुई मिली है।

फिर इज्जत का हवाला देते हुए सब ने फैसला किया कि असली बात कभी सामने आनी नहीं चाहिए। इसलिए सभी ने एक सुर में यही कहा कि चंद्रिका पटेल की मौत हार्ट अटैक से हुई है ताकि उसका पोस्टमार्टम ना हो और उनका राज छुपा रहे। इसी वजह से ना तो पालनपुर में पढ़ रहे उसके छोटे भाई को खबर दी गई और ना ही किसी रिश्तेदार को।

बस सुबह 6:00 बजते ही जल्दी-जल्दी में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। क्राइम को कवर अप करने के लिए सेंधाई ने अपने कनेक्शन का यूज़ करते हुए फेक डेथ सर्टिफिकेट भी बनवा लिया, जिसमें कॉज ऑफ डेथ हार्ट अटैक लिखवा दिया गया। पुलिस को दिए इन कन्फेशन के बाद पुलिस ने शिवराम और नारन को तो अरेस्ट कर लिया पर तब तक पकड़े जाने के डर से सेना भाई फरार हो गया।

पुलिस की जिम्मेदारी और सामाजिक सबक

चंद्रिका की मौत के पीछे सिर्फ उसकी फैमिली नहीं बल्कि पुलिस भी उतनी ही जिम्मेदार थी। चंद्रिका जिस पुलिस से इंसाफ की उम्मीद लगाए अपनी बात कहती रही, उसी पुलिस ने उसे मौत के कुएं में धकेल दिया। उसके पास एक लिविंग एग्रीमेंट था जो क्लियरली दिखाता था कि दोनों अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं।

फिर भी पुलिस ने उस डॉक्यूमेंट को सिर्फ कागज का टुकड़ा समझ उसके अधिकार को कुचल दिया। पुलिस का फर्ज था चंद्रिका को प्रोटेक्ट करना, लेकिन उन्होंने उसे उसी परिवार के हवाले कर दिया, और अंजाम यह हुआ कि एक लड़की, उसके सपने, और उसकी पूरी जिंदगी सिर्फ इसलिए मिट्टी में मिला दी गई क्योंकि कानून परिवार के प्रेशर और पितृसत्ता के बोझ तले झुक गया।

अक्सर मां-बाप सोचते हैं कि बच्चों को बंदिशों में रखकर उन्हें अपने मन मुताबिक ढाल देना ही सही परवरिश है ताकि समाज में उनका नाम रोशन हो। लेकिन असली इज्जत बच्चों की खुशी और उनके जीने के अधिकार को दबाकर नहीं मिलती।

बेटियों पर अक्सर इसका सबसे बड़ा बोझ डाल दिया जाता है कि उनकी जिंदगी के फैसले भी समाज और परिवार तय करें, और इसी सोच से ऑनर किलिंग जैसा पाप जन्म लेता है। कुछ वक्त पहले हमने राधिका यादव मर्डर केस कवर किया था, जिसमें इस मुद्दे से जुड़ी कई बातें डिटेल में की हैं, और ऐसे मामलों में मां-बाप के साथ बच्चों की भी नैतिक जिम्मेदारी पर डिस्कशन किया है।

 

 

 

 

 

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