
प्रगति यादव नाम की एक लड़की अपनी शादी के बाद खुशी से रील बनाते हुए दिख रही थी। इस खुशी की वजह थी उसका तीन साल पुराना प्यार, दिलीप सिंह यादव, जिसके साथ उसकी 5 मार्च 2025 को लव मैरिज हुई थी। यह शादी इसलिए खास थी क्योंकि दोनों ने काफी कोशिशों के बाद अपने परिवारों को इसके लिए राजी किया था। शादी के महज तीन दिन में ही प्रगति ने अपने ससुराल में सबका दिल जीत लिया था। दिलीप के परिवार में खुशियां बिखरी हुई थीं, लेकिन किसी को नहीं पता था कि इन खुशियों के पीछे एक मातम चुपके से दस्तक दे चुका था।
19 मार्च 2025 को औरैया के दिव्यापुर में रहने वाले दिलीप सिंह यादव की शादी को सिर्फ 14 दिन हुए थे। होली का त्योहार मनाने के बाद वह अपने

काम पर लौट गया था। दिनभर का काम निपटाने के बाद वह एक रेस्टोरेंट पर खाना खाने रुका। वहां से उसने अपने बड़े भाई संदीप और पत्नी प्रगति को फोन करके बताया कि उसका बेला गांव में काम खत्म हो गया है और वह घर लौट रहा है। यह फोन उसने दोपहर को बेला गांव से किया था, जो उसके घर से सिर्फ 27 किलोमीटर दूर था, यानी 40-50 मिनट की दूरी पर।
लेकिन देर शाम तक जब दिलीप घर नहीं पहुंचा, तो परिवार वालों ने उसे फोन किया। उसका फोन नहीं लगा। पहले सबको लगा कि वह किसी काम से रुक गया होगा, लेकिन रात होने तक भी जब वह नहीं लौटा और ना ही उसकी कोई खबर आई, तो सभी बेचैन हो गए।
परिवार ने फिर से फोन किया। इस बार फोन उठा, लेकिन दूसरी तरफ से जो आवाज आई, उसने सबके होश उड़ा दिए। फोन औरैया पुलिस ने उठाया और बताया कि दिलीप सिंह यादव बुरी तरह घायल है और अस्पताल में भर्ती है। यह खबर सुनकर परिवार सदमे में आ गया। आनन-फानन में पूरा परिवार अस्पताल पहुंचा, जहां दिलीप सिंह यादवजिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था। उसकी हालत देखकर परिवार को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हुआ।
साथ ही, वे इस बात से परेशान थे कि इस हादसे की खबर प्रगति को कैसे बताई जाए। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने प्रगति के परिवार को यह दुखद खबर दी।
प्रगति यह सुनते ही टूट गई और उसका रो-रोकर बुरा हाल हो गया। परिवार ने उसे संभालने की कोशिश की, लेकिन उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। किसी तरह हिम्मत जुटाकर उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां दिलीप भर्ती था। उसे ऐसी हालत में देखकर प्रगति फूट-फूटकर रोने लगी। यह दृश्य इतना दर्दनाक था कि अस्पताल में मौजूद लोग भी विचलित हो गए। लेकिन नियति ने अपना खेल खेल लिया था। दिलीप सिंह यादव की हालत लगातार बिगड़ती गई और दो दिन तक जिंदगी से जूझने के बाद वह मौत के आगोश में समा गया।
14 दिन पहले की शादी की खुशी अभी परिवार पूरी तरह जी भी नहीं पाया था कि इस हादसे ने सब कुछ मातम में बदल दिया। लेकिन किसी को नहीं पता था कि दिलीप की मौत कोई हादसा नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साजिश थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने चौंकाने वाले खुलासे किए। रिपोर्ट के अनुसार, दिलीप सिंह यादव के सिर पर इतने गहरे वार किए गए थे कि उसका खोपड़ी बुरी तरह टूट गई थी। इतना ही नहीं, उसके सिर के पीछे गोली भी मारी गई थी। इस अपराध को जिस तरह अंजाम दिया गया, उससे साफ था कि यह कोई साधारण लूटपाट नहीं, बल्कि एक गहरी साजिश थी, जिसके तार परिवार के ही किसी शख्स से जुड़े थे।
औरैया मर्डर केस की कहानी
21 साल का दिलीप सिंह यादव औरैया जिले का रहने वाला था। वह अपने तीन भाइयों—संदीप, अक्षय और सचिन—के साथ मिलकर अपने पिता सुमेर सिंह यादव के हाइड्रा और क्रेन के कारोबार को संभाल रहा था। पिता के पास 12 हाइड्रा मशीनें और 10 क्रेन थीं, और उनका कारोबार यूपी के चार जिलों में फैला था। यह परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था और अब खुशियों में भी रंगने वाला था, क्योंकि 5 मार्च 2025 को दिलीप की शादी फफूंद की प्रगति यादव के साथ होने वाली थी।
12वीं तक पढ़ी प्रगति, दिलीप के बड़े भाई संदीप की साली थी और तीन साल से दिलीप के साथ रिलेशनशिप में थी। लेकिन इस शादी के लिए दिलीप सिंह यादव को अपने परिवार को मनाने में काफी मेहनत करनी पड़ी। परिवार को पहले इस रिश्ते की भनक नहीं थी और वे दिलीप के लिए दूसरी लड़की देख रहे थे। जब उन्हें प्रगति के बारे में पता चला, तो उन्होंने इस रिश्ते का विरोध किया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि एक ही परिवार की दो बेटियां उनके घर में बहू बनें। लेकिन प्रगति और दिलीप की जिद के आगे परिवार को झुकना पड़ा और आखिरकार 5 मार्च 2025 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए।

प्रगति और दिलीप सिंह यादव इस शादी से बहुत खुश थे। प्रगति ने अपने व्यवहार से तीन दिन में ही ससुराल में सबका दिल जीत लिया था। लेकिन किसी को नहीं पता था कि यह खुशी क्षणभंगुर थी। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, शादी के चौथे दिन यानी 9 मार्च 2025 को प्रगति अपने मायके चली गई। उधर, दिलीप सिंह यादव होली मनाने के बाद 19 मार्च को काम पर लौट गया। उसने बेला गांव में काम खत्म करने के बाद अपने भाई और प्रगति को फोन करके बताया कि वह घर लौट रहा है।
लेकिन उसी दिन पलिया गांव के पास गेहूं के खेत में दो ग्रामीणों को एक शख्स अधमरी हालत में पड़ा मिला। डर के मारे वे भाग गए, लेकिन बाद में ग्रामीणों को इकट्ठा करके उस जगह लौटे। उन्होंने पुलिस को सूचना दी, जो तुरंत एंबुलेंस के साथ पहुंची। मेडिकल स्टाफ ने जांच की तो पाया कि उस शख्स की सांसें चल रही थीं। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। पुलिस जांच शुरू ही कर रही थी कि उस शख्स की जेब से फोन बजा। फोन उठाने पर पुलिस को पता चला कि वह दिलीप है और कॉल उसके परिवार की ओर से थी।
परिवार अस्पताल पहुंचा, जहां दिलीप की हालत देखकर कोहराम मच गया। डॉक्टरों ने पुलिस को बताया कि दिलीप के सिर पर गहरे वार किए गए हैं और उसे गोली भी मारी गई है। पहले पुलिस इसे हादसा मान रही थी, लेकिन गोली का जख्म एक साजिश की ओर इशारा कर रहा था। परिवार ने बताया कि दिलीप का किसी से कोई झगड़ा या दुश्मनी नहीं थी। फिर भी, परिवार ने FIR दर्ज कराई।
पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन दो दिन बाद, 21 मार्च 2025 को दिलीप ने दम तोड़ दिया। जिस घर में 15 दिन पहले शहनाइयां बजी थीं, वहां अब मातम छा गया। प्रगति, जो महज 20 साल की थी, विधवा हो गई। उसका रो-रोकर बुरा हाल था।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने साफ किया कि दिलीप सिंह यादव की हत्या क्रूरता से की गई थी। पुलिस ने यूपी सरकार के ऑपरेशन त्रिनेत्र के तहत लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली। बेला से दिव्यापुर के रास्ते की फुटेज में दिलीप सिंह यादव को दो लोगों के साथ बाइक पर जाते देखा गया। जांच में पता चला कि इनमें से एक शख्स रामजी नागर था, जो एक हिस्ट्रीशीटर और खतरनाक अपराधी था। पुलिस ने रामजी को पकड़ा और पूछताछ में उसने बताया कि उसे दिलीप की हत्या का ठेका अनुराग यादव नाम के शख्स ने दिया था।
परिवार अनुराग यादव को नहीं जानता था। पुलिस ने अनुराग को पकड़ा और फिर जो खुलासा हुआ, वह चौंकाने वाला था। पुलिस ने दिलीप सिंह यादव के घर पहुंचकर प्रगति से पूछताछ की और उसे हिरासत में ले लिया। परिवार और ग्रामीणों ने इसका विरोध किया, लेकिन पुलिस ने बताया कि दिलीप की हत्या में प्रगति का भी हाथ था।
साजिश की शुरुआत

यह कहानी 2020 से शुरू होती है। फफूंद में प्रगति के घर से 100 मीटर दूर अनुराग यादव रहता था। 29 साल का अनुराग बीएससी करने के बाद गांव में रहता था। उसके पास कोई काम-धंधा नहीं था, लेकिन वह झूठी शानो-शौकत की जिंदगी का दिखावा करता था। ब्रांडेड कपड़े, महंगी गाड़ियां, और फ्लाइट से ट्रैवल का रौब वह दूसरों के पैसों से दिखाता था। असल में वह ट्रैक्टर चलाकर गुजारा करता था। उसकी इस झूठी चमक-दमक से प्रगति आकर्षित हो गई।
दोनों के परिवारों में जमीन के विवाद के चलते पुरानी दुश्मनी थी। इस वजह से प्रगति और अनुराग खुलकर बात नहीं कर पाते थे। एक दिन अनुराग ने प्रगति को अपना नंबर लिखकर दिया। प्रगति ने अपने पिता के फोन से रात में अनुराग से बात शुरू की। यह सिलसिला मुलाकातों में बदल गया। प्रगति अपनी मौसी के घर औरैया में अक्सर जाती थी और साईं मंदिर जाने के बहाने अनुराग से होटल में मिलती थी। दोनों का रिश्ता गहरा हो गया। प्रगति ने अनुराग का नाम तक बदलवा दिया, जो पहले मनोज नारायण था।
लेकिन यह रिश्ता ज्यादा दिन छिपा नहीं रहा। प्रगति के परिवार ने इसका विरोध किया, लेकिन प्रगति अनुराग से शादी करना चाहती थी। उसने नस तक काट ली थी। अनुराग उसे हाई-प्रोफाइल जिंदगी के सपने दिखाता था, जो प्रगति को अपनी बहन पारुल की शादीशुदा जिंदगी से प्रेरित लगते थे। पारुल की शादी 2019 में एक अमीर परिवार में हुई थी, और प्रगति भी वैसी ही जिंदगी चाहती थी। लेकिन वह जानती थी कि परिवार की दुश्मनी के चलते अनुराग से शादी मुश्किल है, और अनुराग उसे वह जिंदगी नहीं दे सकता।
साजिश का जाल
2022 में प्रगति की बहन पारुल की ससुराल, जहां दिलीप रहता था, आर्थिक रूप से मजबूत थी। प्रगति का वहां आना-जाना था, और वहां उसकी दिलीप से मुलाकातें होने लगीं। प्रगति ने सोची-समझी चाल से दिलीप सिंह यादव से दोस्ती की और फिर नजदीकियां बढ़ाईं। वह तीन साल तक दिलीप सिंह यादव के साथ प्यार का नाटक करती रही। उसने अनुराग को भी दिलीप से मिलवाया और दोनों को दोस्त बना दिया। दिलीप सिंह यादव को इसकी भनक तक नहीं थी कि प्रगति और अनुराग का रिश्ता क्या था।
प्रगति ने दिलीप सिंह यादव को प्यार में फंसाकर शादी तक पहुंचा दिया। वह दिलीप सिंह यादव की संपत्ति हड़पना चाहती थी, ताकि अनुराग के साथ ऐशो-आराम की जिंदगी जी सके। शादी के बाद वह अपने मायके चली गई और 17 मार्च को उसी होटल में अनुराग से मिली, जहां वह रील बनाती दिखी। इस मुलाकात में उसने हत्या की अंतिम योजना बनाई।

प्रगति और अनुराग ने हत्या को हादसा दिखाने की योजना बनाई। अनुराग ने अपने मौसेरे भाई दुर्लभ यादव और हिस्ट्रीशीटर रामजी नागर को हायर किया। रामजी ने 2 लाख रुपये की सुपारी ली—1 लाख पहले और 1 लाख बाद में। प्रगति ने मुंह दिखाई के 70,000 रुपये रखे और बाकी 30,000 दिलीप सिंह यादव से ही मांग लिए। अनुराग ने बाकी रकम जुटाई। इस साजिश में पांच लोग शामिल थे—प्रगति, अनुराग, दुर्लभ, रामजी, और रामजी का दोस्त शिवम यादव।
19 मार्च 2025 को जब दिलीप ने प्रगति को बेला गांव से फोन किया, तो प्रगति ने उसकी लोकेशन अनुराग को बता दी। अनुराग ने रामजी, दुर्लभ, और शिवम को दिलीप की पहचान कराई और वहां से चला गया। तीनों ने दिलीप का पीछा किया। एक सुनसान जगह पर उन्होंने उसकी हाइड्रा रुकवाई, कार खराब होने का बहाना बनाया, और उसे बाइक पर बैठाकर पलिया गांव के गेहूं के खेत में ले गए। वहां उन्होंने दिलीप पर हमला किया। पहले उसे पीटा, फिर बंदूक की बट से सिर पर वार किए। गुस्से में दुर्लभ ने देसी कट्टे से उसके सिर में गोली मार दी।
उन्हें लगा कि दिलीप मर गया, इसलिए वे उसे खेत में छोड़कर भाग गए। लेकिन 315 बोर की गोली से दिलीप सिंह यादव की तुरंत मौत नहीं हुई। उसकी मौत सिर की चोटों और खोपड़ी के फ्रैक्चर से हुई, जिसके कारण दो दिन बाद अस्पताल में उसने दम तोड़ा।
पुलिस की कार्रवाई
सीसीटीवी फुटेज से पुलिस ने रामजी, प्रगति, और अनुराग को पकड़ लिया। दुर्लभ और शिवम फरार हो गए, लेकिन 27 मार्च 2025 को शहबाजपुर बंबा में पुलिस चेकपोस्ट पर उनकी मुठभेड़ हुई। जवाबी फायरिंग में दोनों के पैरों में गोली लगी और वे पकड़े गए। पुलिस को उनके पास से पिस्टल, कारतूस, बाइक, मोबाइल, और नकदी मिली।
पांचों पर IPC की धारा 302 (हत्या), 120B (आपराधिक साजिश), और 35 के तहत केस दर्ज हुआ। अगर अपराध सिद्ध होता है, तो इन्हें फांसी या उम्रकैद हो सकती है।
यह केस दिखाता है कि लालच और झूठे दिखावे ने प्रगति और अनुराग को इस हद तक अंधा कर दिया कि उन्होंने दिलीप सिंह यादव जैसे सीधे-सादे इंसान को प्यार के जाल में फंसाकर उसकी जान ले ली। प्रगति ने न सिर्फ दिलीप, बल्कि अपनी बहन और उसके परिवार की जिंदगी भी बर्बाद कर दी। यह कहानी बताती है कि जब प्यार लालच का सौदा बन जाता है, तो रिश्ते और जिंदगियां तबाह हो जाती हैं।