भारत की आर्थिक प्रगति (India’s economic progress)

लेकिन आश्चर्य कि भारत घबराया नहीं।
जब यूरोपियन यूनियन के साथ ऐसा ही हुआ था, तो उसने विरोध किया था।
जापान ने तत्काल बातचीत शुरू कर दी थी।
चीन ने पलटवार करते हुए अमेरिकी सामानों पर शुल्क कई गुना कर दिया था।
लेकिन भारत बिल्कुल शांत। कोई अफरातफरी नहीं। रातोंरात वाशिंगटन जाने वाली कोई फ्लाइट नहीं। कोई आपातकालीन बैठकें नहीं।
क्यों?
नरेंद्र मोदी का अहंकार, अंधा राष्ट्रवाद, या कुछ और? जो बहुत गहरा है और हमें दिखाई नहीं दे रहा। वास्तव में इसके पीछे है एक दशक से भी पुरानी एक योजना।
मई 2014, साउथ ब्लॉक, दिल्ली।
नए प्रधानमंत्री के साथ पहली ब्रीफिंग।
एक महत्वपूर्ण अधिकारी ने बोलना आरंभ किया। सर, अगर भारत को भविष्य में महाशक्ति बनना है, तो अमेरिका का दबाव झेलने के लिए तैयार रहना होगा।
ट्रेड, टेक्नोलॉजी, तेल—सब पर दबाव आएगा।
हमारा असली दुश्मन चीन, अमेरिका या कोई देश नहीं। हमारा असली दुश्मन है अन्य देशों पर हमारी निर्भरता।
व्यापार पर अधिक शुल्क, प्रतिबंध, डॉलर का दबाव, रक्षा सौदों की शर्तें और भी बहुत कुछ।
कमरे में सन्नाटा छा गया। प्रधानमंत्री ने पूछा, हल क्या है?
उत्तर मिला, अगले कुछ वर्षों तक किसी भी जोखिम से दूरी बनाना होगा। चुपचाप अपना दबदबा बनाना होगा।
अमेरिकी विरोध नहीं, बल्कि भारत पक्षीय नीति अपनाना होगा।
खाड़ी देशों और अफ्रीका से रिश्ता मजबूत करना होगा।
साथ-साथ में बैकअप सिस्टम बनाना होगा।
अपने आसपास के समुद्री क्षेत्रों पर नियंत्रण मजबूत करना होगा।हम विश्व का सबसे बड़ा बाजार हैं। अपनी जनसंख्या को कमजोरी नहीं, बल्कि शक्ति की तरह प्रयोग करना होगा।
मेक इन इंडिया (Make in India)
योजना बन गई और अगले 10 साल तक चलती रही। कदम दर कदम।
वर्ष 2014 में मेक इन इंडिया की शुरुआत हुई।
2015 में क़तर के साथ गैस समझौता नए सिरे से किया गया, ताकि ऊर्जा की उपलब्धता संकट न बने।
2016 में यूपीआई लॉन्च किया। पैसे की लेनदेन में विदेशी माध्यमों पर निर्भरता समाप्त। दूसरे देशों को यूपीआई प्लेटफॉर्म पर लाने का काम शुरू।
2017 में जीएसटी से एक देश, एक बाजार का लक्ष्य पूरा किया।
2018 में ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध से सबक लिया।
भारत को वित्तीय रूप से सुरक्षित बनाने की रणनीति पर तेजी से काम शुरू हो गया।
2019 में नई इलेक्ट्रॉनिक्स नीति लागू। अब केवल असेंबलिंग नहीं, तैयार प्रोडक्ट और पार्ट्स भी बनाना है।
2020 में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव या पीएलआई योजना शुरू। ताकि कंपनियां भारत में मैन्युफैक्चरिंग करें। लगभग 2 लाख करोड़ का निवेश आया। पहला राफेल लड़ाकू विमान भारत पहुंचा।
2021 में स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व्स का विस्तार शुरू हुआ। कोविड के लॉकडाउन में जब कच्चे तेल का दाम जमीन पर आ गया, भारत भर-भर के सस्ता तेल खरीद रहा था। उसे देश भर में धरती के नीचे बने गुप्त भंडारों में जमा कर रहा था, ताकि किसी संकटकाल में कोई तेल बंद करने की धमकी न दे पाए।
2022 में भारत का पहला विमानवाहक पोत आईएएस विक्रांत समुद्र में उतरा। यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक क्षेत्रों में व्यापार समझौते हुए।
2023 में यूपीआई और पे नाउ लिंक हुआ। रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिलने लगा।
2024 में अग्नि-5 मिसाइल का सफल परीक्षण। पूरा चीन भारत की पहुंच में आ चुका था। एक ऐसा देसी प्रक्षेपास्त्र जो किसी भी देश की एयर डिफेंस सिस्टम को भेद सकता है। इसी साल ईरान के साथ चाबहार पोर्ट डील पर हस्ताक्षर हुए। पाकिस्तान को बाइपास करके मध्य एशिया के बाजारों तक भारत की सीधी पहुंच बन चुकी थी।
2025 में भारत का सर्विसेज एक्सपोर्ट 387.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। अमेरिका ने रूस से कच्चा तेल लेने पर भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया। आरबीआई

ने आयात के नियम थोड़े ढीले किए, ताकि देसी उद्योग तत्काल किसी संकट में न फंसे।
भारत अपने बाजार को हथियार की तरह प्रयोग करने को तैयार हो चुका था।
यह अहंकार नहीं था। यह वो कवच था, जिसे भारत बिना किसी हड़बड़ी के, बहुत आराम से, चुपचाप अपनी 140 करोड़ जनता की रक्षा के लिए बना रहा था।
2013 में भारत की जीडीपी 1.86 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
2025 में भारत की जीडीपी 4.19 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो चुकी है। भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।
पीपीपी या परचेसिंग पावर पैरिटी, यानी क्रय शक्ति समता के हिसाब से भारत की जीडीपी 17.65 ट्रिलियन डॉलर है। यह अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। विकास दर 6 से 8% के बीच है, जो विश्व में सबसे अधिक है।

वर्ष 2014 के बाद भारत में 300 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश आया, जिसमें से 81 बिलियन अकेले 2025 में आया।
गरीबों की संख्या पहले की तुलना में आधी हो चुकी है। अर्थव्यवस्था स्थिर है। निवेशकों का भरोसा लगातार बना हुआ है।
यह यात्रा इतनी भी सरल नहीं थी। एक भारतीय के रूप में हम सब ने इस लक्ष्य तक पहुंचने की कुछ न कुछ कीमत अवश्य दी है।
पेट्रोल, डीजल समेत कई वस्तुओं और सेवाओं के लिए अधिक मूल्य चुकाना पड़ा। बहुत टैक्स देना पड़ा। लेकिन वह सब जिसके लिए था, वो यही है।
और अब अमेरिका परेशान है। बात डोनाल्ड ट्रंप की नहीं। कोई भी राष्ट्रपति होता, वो इसी तरह व्यवहार करता। अमेरिका और पश्चिमी ईसाई शक्तियां बेचैन हैं कि अब भारत में उनका कोई गुलाम गवर्नर नहीं बैठा है। अब यहां उनकी डोरियों से बंधी कठपुतलियां नहीं हैं।
रही बात टैरिफ की। अब भारत एक योद्धा की तरह है, जिसके हाथों में शस्त्र और शरीर पर कवच है। अब यह कोई गुलाम नहीं, जो अपनी बेड़ियों के अंदर छटपटाता हो। जिसे स्वतंत्र होते ही नेहरूवादी समाजवाद में बांध दिया गया हो।
अब हम सहज दिखते हैं। अब हम घुसपैठियों से अपनी धरती की रक्षा करते हैं। अपने समुद्रों की रखवाली करते हैं। चोरी से हमारे आसमान में घुसने वालों को धरती पर उतार देने की शक्ति रखते हैं।
और हमारी आर्थिक शक्ति अब किसी औपनिवेशिक शक्ति द्वारा मिलने वाले दान की मोहताज नहीं।
हां, मोदी को इस सब का श्रेय नहीं मिलेगा। उनकी आलोचना होगी। उनका उपहास किया जाएगा।
लेकिन बीत चुका वो कालखंड, उस कालखंड के कष्ट, वो सब उस भट्टी की अग्नि थी, जिसमें तपकर हमारी हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता और भी निखरकर सामने आई है। मोदी तो निमित्त मात्र थे।
और अब प्रश्न यह है, जब भारत झुकता नहीं, जब प्रतिबंध असर करते नहीं, तो षड्यंत्रकारी शक्तियां क्या करेंगी?
क्या वे चुपचाप तमाशा देखेंगी? क्या वे प्रतिघात नहीं करेंगी? क्या वे हमें फिर से भ्रमित करने का प्रयास नहीं करेंगी?
सोचिए और सतर्क रहिए। आने वाला समय और भी अधिक चुनौतियों वाला होगा।