113वीं रैंक तक पहुंच गई राधिका यादव की दुखद कहानी

राधिका यादव
राधिका यादव

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राधिका का जीवन और करियर

25 साल की राधिका यादव खुशमिजाज, चुलबुली और फुल ऑफ लाइफ थी। लेकिन ये सिर्फ उसका एक पहलू था। बचपन से रैकेट थामने वाली राधिका पेशे से टेनिस प्लेयर थी। वो हरियाणा के टॉप फाइव टेनिस प्लेयर्स में शुमार थी। इतनी टैलेंटेड, फोकस्ड और डिसिप्लिन थी कि नवंबर 2024 तक वो आईटीएफ वुमेन डबल्स की 113वीं रैंक तक पहुंच गई थी। 57 टूर्नामेंट्स, 18 गोल्ड मेडल्स। राधिका देश की अगली सानिया मिर्जा बनना चाहती थी। उसकी मेहनत और काबिलियत को देखकर किसी को इसमें शक नहीं था। लेकिन जिंदगी की कोर्ट में मौत कब अपोनेंट बन जाए, कोई नहीं बता सकता। राधिका के आसमान छूने वाले सपनों को कुचला गया, जिसने न सिर्फ उसका करियर बल्कि पूरी जिंदगी खत्म कर दी।

राधिका यादव ने ऐसा क्या गुनाह किया कि उसे मौत की सजा मिली? सबसे बड़ा धक्का ये था कि इस हार के पीछे कोई दुश्मन नहीं, बल्कि कोई अपना था। उस अपने ने ही राधिका से उसका भविष्य और सांसें छीन लीं।राधिका यादव

हत्या की घटना

10 जुलाई 2025 को गुरुग्राम के सेक्टर 57, सुशांत लोक में जॉइंट फैमिली के साथ रहने वाली राधिका सुबह से बहुत खुश थी। आज उसकी मां का जन्मदिन था। मां को फीवर था, इसलिए राधिका यादव ने किचन में उनके लिए स्पेशल डिश बनाकर सरप्राइज देने का सोचा। सुबह 10:30 बजे अचानक ग्राउंड फ्लोर पर मौजूद राधिका के चाचा कुलदीप और उनके बेटे पीयूष को तेज शोर सुनाई दिया। कुछ सेकंड में कई बार शोर होने से उन्हें लगा कि फर्स्ट फ्लोर के किचन में शायद कोई कुकर फटा है, जहां राधिका खाना बना रही थी। दोनों भागकर किचन पहुंचे तो मंजर देखकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई।

राधिका यादव खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी। वो उसे गुरुग्राम के सेक्टर 56 में एशिया मेरिंगो हॉस्पिटल ले गए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राधिका यादव दम तोड़ चुकी थी। उसकी मौत कुकर ब्लास्ट से नहीं, बल्कि गोलियों से हुई थी। ये केस एक्सीडेंटल नहीं, मर्डर केस बन चुका था।

दीपक यादव का कबूलनामा

दीपक यादव
दीपक यादव

सुबह 11:30 बजे हॉस्पिटल से पुलिस को कॉल गया। पुलिस की एक टीम हॉस्पिटल और एक टीम राधिका यादव के घर पहुंची। इन्वेस्टिगेशन शुरू हुई, लेकिन घरवालों से कोई सीधा जवाब नहीं मिला। क्राइम सीन, यानी किचन में राधिका का खून और दीवार में धंसी बुलेट से साफ था कि उसे वहीं गोली मारी गई। कड़ाई से पूछताछ पर राधिका के पिता दीपक यादव ने कबूलनामा दिया। उनका कन्फेशन पूरे देश में खलबली मचा गया और कई कॉन्सपिरेसी थ्योरीज को जन्म दिया।

दीपक ने कहा, “कुछ दिन पहले राधिका के कंधे में चोट लगी थी, इसलिए वो खेल नहीं रही थी। उसने अपनी एकेडमी खोली थी और बच्चों को कोचिंग देती थी। वजीराबाद गांव में दूध लेने जाता था तो लोग कहते थे कि तू लड़की की कमाई खा रहा है। लोग उसके कैरेक्टर पर उंगलियां उठाते थे। मैंने एकेडमी बंद करने को कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। ये टेंशन मेरे मन में बना रहता था, जिससे मेरी इज्जत को ठेस पहुंचती थी। मैं तनाव में था। इसलिए मैंने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर निकाली और राधिका यादव को किचन में खाना बनाते वक्त पीछे से कमर पर गोलियां मार दीं।”

ये वजह जितनी सीधी लगती थी, उतनी ही बोगस थी। इसे समझने के लिए दीपक और राधिका की बैकस्टोरी जाननी होगी। गुरुग्राम में रहने वाले दीपक यादव सक्सेसफुल बिल्डर थे, जिनकी रेंटल इनकम ₹10 लाख से ज्यादा थी। 23 मार्च 2000 को राधिका का जन्म हुआ। फाइनेंशियली सक्षम होने के कारण दीपक ने राधिका यादव की स्कूलिंग स्कॉटिश हाई इंटरनेशनल स्कूल से करवाई, जिसकी फीस लाखों में थी। राधिका यादव ने पढ़ाई के साथ कम उम्र में टेनिस शुरू किया और अपनी मेहनत से नाम कमाया। सबको लगता था कि वो सानिया मिर्जा बनेगी। दीपक को अपनी बेटी पर सबसे ज्यादा भरोसा था। फिर भी, उन्होंने समाज के तानों को हत्या की वजह बताया।

पुलिस जांच और मोटिव

पुलिस ने उन लोगों के नाम पूछे जिन्होंने राधिका के खिलाफ उकसाया, लेकिन दीपक एक भी नाम नहीं बता सके। पुलिस ने वजीराबाद गांव में 20 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की, लेकिन किसी ने ऐसी बातचीत की पुष्टि नहीं की। मोटिव की खोज में लव जिहाद का एंगल उभरा। 20 जून को रिलीज हुए ‘कारवा’ म्यूजिक वीडियो में राधिका ने एक्टर-सिंगर इनाम उल हक के साथ काम किया था। कुछ लोगों ने इसे धर्म से जोड़कर दावा किया कि दीपक ने अफेयर के चलते राधिका की हत्या की।

Chacha Kuldeep Yadav

लेकिन राधिका ने ये वीडियो परिवार की इजाजत से शूट किया था। शूटिंग के वक्त वो अपनी मां के साथ सेट पर जाती थी। गाने में कोई आपत्तिजनक सीन नहीं था। इनाम ने कहा कि उनका राधिका से सिर्फ प्रोफेशनल रिश्ता था। राधिका ने शूटिंग के बाद अपना इंस्टा अकाउंट डीएक्टिवेट कर दिया था। इनाम ने प्रमोशन के लिए व्हाट्सएप पर संपर्क किया, लेकिन राधिका ने कहा कि वो बिजी है और बाद में अकाउंट एक्टिव करेगी।

पुलिस को राधिका यादव और इनाम के अफेयर का कोई सबूत नहीं मिला। दीपक के कन्फेशन में तीन मोटिव बताए गए: बेटी की कमाई खाना, एकेडमी बंद करने की बात, और कैरेक्टर पर सवाल। कुछ का मानना था कि राधिका यादव का टेनिस की शॉर्ट ड्रेस पहनना लोगों को नागवार गुजरता था। लेकिन अगर ये सच होता, तो दीपक राधिका को इतनी कम उम्र से टेनिस क्यों खेलने देते? वे खुद उसे प्रैक्टिस और टूर्नामेंट्स के लिए देश-विदेश ले जाते थे।

ऑनर किलिंग और टॉक्सिक पेरेंटिंग

कंधे की चोट के बाद डॉक्टर ने राधिका यादव को टेनिस से ब्रेक लेने को कहा। तब वो एक प्राइवेट एकेडमी में कोच बन गई। न्यूज में दावा किया गया कि दीपक ने करोड़ों लगाकर एकेडमी खुलवाई, लेकिन सच ये था कि राधिका घर के सामने वाली एकेडमी में कोच थी। बाद में दीपक ने सेक्टर 61 में ₹35,000 मंथली रेंट पर टेनिस कोर्ट लिया। दीपक राधिका के करियर के लिए पैशनेट थे और सारे खर्चे उठाते थे। उनकी फैमिली आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त थी, इसलिए कन्फेशन के तीनों पॉइंट्स बेबुनियाद लगते हैं।

इन्वेस्टिगेटर्स के मुताबिक, ये प्रीप्लांड मर्डर था। उस दिन दीपक ने अपने बेटे धीरज को दूध लाने भेजा, जबकि रोज वो खुद जाता था। राधिका की मां ने कहा कि उन्हें कुछ नहीं पता। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि राधिका यादव को सामने से गोलियां मारी गईं, जबकि दीपक ने पीछे से गोली मारने की बात कही। पीछे से गोली मारना प्रीप्लांड मर्डर दर्शाता है, जिसमें गिल्ट या हेजिटेशन हो सकता है। सामने से गोली मारना गुस्से और रेज का संकेत देता है। दीपक ने जानबूझकर झूठ बोला ताकि इसे प्रीप्लांड दिखाकर फांसी की सजा पाए।

प्रीप्लांड मर्डर में IPC सेक्शन 302 या BNS सेक्शन 1001 के तहत फांसी या उम्रकैद की सजा होती है, जबकि रेज में मर्डर (IPC 304 या BNS 106) में अधिकतम उम्रकैद या 10 साल की सजा मिलती है। दीपक ने अपने भाई विजय से कहा, “मैंने कन्यावध किया, मुझे फांसी दे दो।” थाने में भी उन्होंने फांसी की मांग की। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट कन्फेशन से ऊपर मानी जाती है, इसलिए साफ है कि दीपक ने गुस्से में चार गोलियां मारीं। क्रिमिनोलॉजी में इसे ओवरकिल कहते हैं, जो गुस्सा, फ्रस्ट्रेशन और दर्द को दर्शाता है।

मर्डर से दो हफ्ते पहले घर के हालात बदल गए थे। राधिका अपने पिता की बजाय मां के साथ एकेडमी जाने लगी थी। पुलिस ने सोशल मीडिया से मोटिव का कनेक्शन खारिज किया। राधिका यादव का इंस्टा प्राइवेट था, जिसमें सिर्फ छह पोस्ट और 68 फॉलोवर्स थे। राधिका यादव की दोस्त हिमांशिका, जो टेनिस प्लेयर है, ने बताया कि राधिका के परिवार में सोसाइटी का दबाव बहुत था। वे ऑर्थोडॉक्स थे, और राधिका को कई रिस्ट्रिक्शंस झेलनी पड़ती थीं। उसे हर बात का जवाब देना पड़ता था। हिमांशिका के मुताबिक, दीपक कुछ लोगों की बातों

से प्रभावित हुए, जो राधिका यादव की सफलता से जलते थे। वे कहते थे कि राधिका मेकअप करती है, छोटे कपड़े पहनती है, और दीपक उसकी कमाई पर जी रहा है।

राधिका ने अक्टूबर 2024 में अपने फॉर्मर कोच अजय यादव को व्हाट्सएप पर बताया कि वो घर से निकलकर ऑस्ट्रेलिया या दुबई में इंडिपेंडेंटली रहना चाहती है। उसे घर में घुटन महसूस होती थी। दीपक का राधिका यादव के टेनिस करियर के लिए जुनून उससे भी ज्यादा था। 2024 में राधिका का एक्टिंग में इंटरेस्ट और इंडिपेंडेंट रहने की चाहत ने पिता-बेटी के बीच कॉन्फ्लिक्ट पैदा किया। राधिका यादव टेनिस के बाहर की दुनिया देखना चाहती थी, लेकिन उसे कंडीशनल आजादी थी।

राधिका यादव दीपक के लिए सिर्फ बेटी नहीं, बल्कि उनकी इज्जत, कंट्रोल और मर्दानगी का प्रतीक थी। लोगों के ताने और सोसाइटी का डर उन्हें इतना अंधा कर गया कि उन्होंने अपनी बेटी को मार डाला। वो भूल गए कि कुछ लोग उनकी तरक्की से जलते हैं। ऑनर किलिंग के केस में अक्सर पिता अपनी लाडली बेटी को समाज के डर से मार देता है। ये केस सिलेक्टिव फ्रीडम का है, लेकिन असल में ये ऑब्सेशन विद कंट्रोल और कंडीशनल पैरेंटिंग की कहानी है।

राधिका को टेनिस की मिनी स्कर्ट पहनने, वर्कआउट करने और टूर्नामेंट्स में जाने की आजादी थी, लेकिन ये परिवार के एम्बिशंस को पूरा करने के लिए थी। अगर वो उस इमेज से हटकर कुछ चुनती, तो बैकलैश होता।

राधिका दीपक के लिए एक प्रोजेक्ट थी, सक्सेस का सिंबल थी। हाईली ऑब्सेस्ड पेरेंट्स बच्चे को ह्यूमन बीइंग की तरह देखना भूल जाते हैं। दीपक का सुबह छोड़ना, दिनभर इंतजार करना और शाम को ले आना केयर नहीं, टॉक्सिक पजेसिवनेस थी। राधिका यादव को टेनिस चैंपियन बनने की आजादी थी, लेकिन इंडिविजुअल आइडेंटिटी की नहीं।

सच्ची आजादी बच्चों को सिर्फ सक्सेस की राह पर धकेलना नहीं, बल्कि उन्हें ऐसी स्पेस देना है जहां वो अपनी बात, सवाल, परेशानियां और सपने बिना डर के रख सकें। बच्चों के लिए आजादी का मतलब बगावत नहीं, बल्कि अपनी बात जिम्मेदारी और हिम्मत से रखना है। पेरेंट्स को बच्चों को प्रोजेक्ट की तरह नहीं देखना चाहिए।

करियर की आजादी देकर इमोशनल आजादी छीनना भी कंट्रोल है। ऐसी सक्सेस, जो इमोशनल सफोकेशन की कीमत पर मिले, असल में फेलियर है। डिसएग्री करना ठीक है, लेकिन हिंसा से सजा देना कभी ठीक नहीं। बेटी की जान लेना इज्जत बचाना नहीं, बल्कि मर्डर है। कोई नाराजगी, शर्म, या समाज का डर इसे जायज नहीं ठहरा सकता।

 

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