नेपाल की राजधानी काठमांडू में बेकाबू हालात

”हिंसक प्रदर्शन” में यह नेपाल की राजधानी काठमांडू की हालत है। 20 से 25 साल के युवा, जिन्हें जंजेड कहा जा रहा है, वह सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं। हर तरफ एक ही नारा है: “केपी चोर देश छोड़।” केपी चोर ने भी दोपहर होते-होते राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा कल सौंप दिया। इसके कुछ देर बाद राष्ट्रपति ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। आर्मी है, देश में पुलिस है, लेकिन सरेंडर मोड में है। दो दिन में 30 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। 400 से ज्यादा लोग घायल हैं।
नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों ने कल हालात इतने बिगाड़ दिए कि प्रदर्शनकारियों ने संसद, पीएम, और राष्ट्रपति के निजी आवास तक में आग लगा दी. सुरक्षा बलों से उनके हथियार छीन लिए। केवल इतना भर नहीं, उन्होंने तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों के घर पर भी हमला किया। तीन पूर्व प्रधानमंत्री जिनमें झालाना खनाल के घर में आग लगा दी, जिसमें उनकी पत्नी, राज लक्ष्मी चित्रकार, को जलाकर मार डाला। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देवबा को उनके घर में घुसकर पीटा।
जबकि वित्त मंत्री विष्णु पोटेल को काठमांडू में उनके घर के पास दौड़ा-दौड़ाकर मारा। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में एक प्रदर्शनकारी उनके सीने पर लात मारते दिख रहा है। देश में जारी हिंसक घटनाओं के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पद से इस्तीफा दे दिया। सेना का एक हेलीकॉप्टर उन्हें लेकर सुरक्षित स्थान पर चला गया। प्रदर्शन क्यों हुए? क्या नेपाल फिर से राजशाही की ओर जाएगा? और क्या नेपाल के अंदर निरंतर फिर से उठ रही हिंदू राष्ट्र की मांग आखिर सफल होगी? आखिर नेपाल के अंदर पूरा मामला क्या है?
सोशल मीडिया बैन ने कैसे बढ़ाई आग?
सवाल बहुत सारे हैं, जवाब भी हैं क्योंकि नेपाल में जो चल रहा है उसकी आंच पर रोटी सिकती रहेगी। चाइना का चेला प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली एससीओ समिट में शामिल होने के लिए चीन गया था। इसके 5 दिन बाद यानी 4 सितंबर को ओली ने Facebook, YouTube, Instagram, और X जैसी 26 अमेरिका-बेस्ड सोशल मीडिया कंपनियों पर बैन का ऐलान कर दिया। सरकार का कहना था कि इन कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन की शर्तें पूरी नहीं की।
जबकि TikTok जैसे बहुत सारे चीनी ऐप पर वहां कोई बैन नहीं लगाया गया था। ओली ने यह सब चीन के समर्थन में अमेरिका का विरोध करने के लिए इन कंपनियों पर बैन लगाया था। जब नेपाल के युवा इस बैन के विरोध में खड़े हुए तो इसे अमेरिकी लॉबी का पूरा सपोर्ट मिला। विरोधी आगे बढ़े लेकिन केपी शर्मा ओली ने उन पर गोलियां बरसवा दी और करीब 20 छात्र मारे गए। लेकिन यह एक अकेला गुब्बारा नहीं था जो फट गया।
नेपाल की राजनीति का अस्थिर इतिहास
नेपाल के अंदर बहुत सारे विरोध के गुब्बारे उड़ रहे हैं। 1 जून 2001 को नेपाल में राजशाही के नारायण हित दरबार में एक नरसंहार हुआ था। जिसमें राजा वीरेंद्र, रानी, वैश्वर्या और शाही परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। यह वह दौर था जब नेपाल, चाइना के समर्थन वाले माओवादी नेताओं की लगाई आग में खुद जल रहा था। राजा वीरेंद्र की हत्या के बाद दीपेंद्र को कोमा में रहते हुए राजा भी घोषित किया गया।
लेकिन 3 दिन बाद उनकी भी मौत हो गई। फिर उनके चाचा प्रिंस ज्ञानेंद्र को सिंहासन पर बैठाया जिसके बाद नेपाल में राजशाही का अंत हुआ और देश ने एक लोकतांत्रिक व्यवस्था अपना ली। तब से देश में 14 सरकारें आई लेकिन एक भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देवबा पांच बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। केपी शर्मा ओली चार बार इस पद पर धारण कर चुके हैं। पुष्पक कमल देहल प्रचंड भी तीन बार प्रधानमंत्री रह चुका है।
राजशाही की वापसी की उठती मांग
इसके अलावा कई दूसरे राजनेता एक-एक बार इस पद पर रह चुके हैं। लेकिन एक भी नेता अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। इसी साल 9 मार्च को राजशाही के समर्थक पूर्व राजा ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के पोस्टरों के साथ काठमांडू के तिरुभवन हवाई अड्डे के बाहर एक प्रदर्शन किया गया था। उनकी मांग थी कि नेपाल में फिर से हिंदू राष्ट्र होना चाहिए। इसके अलावा पिछले साल नेपाली कांग्रेस की महासमिति की बैठक से पहले नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने के मांग के मुद्दे ने जोर पकड़ा था।
फिर मार्च के अंत में राजशाही समर्थकों ने एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया। इस दौरान काठमांडू में प्रदर्शनकारियों ने कई जगह पर तोड़फोड़ और आगजनी की थी। प्रदर्शन के दौरान हिंसक झड़प में एक पत्रकार समेत दो लोगों की मौत हुई थी। यह प्रदर्शन राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी आरपीपी ने आयोजित किया था। जिसे नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का समर्थन प्राप्त है और यह पार्टी देश में राजशाही स्थापित करने की मांग कर रही है। यानी राजशाही समर्थकों हिंदू राष्ट्र समर्थकों का गुब्बारा भी नेपाल में की राजनीति की हवा में तैर रहा था।
बड़े-बड़े घोटालों से बढ़ा जनता का गुस्सा
इसके अलावा पिछले 4 साल में तीन बड़े घोटाले हो चुके हैं। 5400 करोड़ का गिरी बंधु भूमि स्वैप घोटाला, 13,000 करोड़ का ओरिएंटल कोऑपरेटिव घोटाला और करीब 70,000 करोड़ का कोऑपरेटिव घोटाला जिसकी कोई जवाबदेही सरकार नहीं दे रही थी। लोगों में गुस्सा था। यह गुब्बारा भी नेपाल की राजनीति के अंदर उड़ रहा था। बेरोजगारी और असमानता वहां बहुत तेजी से बढ़ी जो 10% से ज्यादा हो चुकी है।
20% लोगों के पास आधी से ज्यादा संपत्ति नेपाल में जमा है। पिछले दिनों एक खबर आई थी कि नेपाली सरकार साउथ एशिया की सबसे करप्ट सरकार है। लोगों का मानना है कि उनके नेता विदेशी दलाल हैं। उनके बच्चे ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूरोप जा रहे हैं और गरीब खाने के लाले पड़ रहे हैं। उन्हें आसपास के देशों में पलायन करना पड़ रहा है। यानी नेताओं ने रिश्तेदारों को महत्वपूर्ण पद दिए हैं।
भयंकर न नेपोटिज्म। उनके बच्चों की विदेश यात्राएं महंगे ब्रांड यूज करने और पार्टियों के फोटो सोशल मीडिया पर देख युवा नाराज चल रहे थे। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की शासन शैली को अक्सर तानाशाही कहा जाता है। उन पर सत्ता और सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग के आरोप भी लंबे समय से लगते रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या यह मानी जाती है कि होली आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाता। मौजूदा जेड प्रदर्शनों में युवाओं ने सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप भयंकर तौर पर लगाया जो हाल के वर्षों में बढ़ता चला गया।
सोशल मीडिया लोगों को सरकार के खिलाफ अक्सर खुलकर बोलने का मौका देता है। केपी शर्मा ओली उस पर भी बैन लगाने के लिए चल दिया। लेकिन ओली जैसे नेता इन आलोचनाओं को निजी हमला मानते हैं और उन्हें रोकने की कोशिश करते हैं। यही प्रवृत्ति दुनिया भर में कम्युनिस्ट लीडरशिप की पहचान है। इसमें हैरानी नहीं कि ओली ने भी वही तरीका अपनाया। दूसरा, चाइना का नेपाल के अंदर बढ़ता दखल नेपाल के लोगों की परेशानी का कारण बन रहा था।
नेपाल में अमेरिका की भूमिका और लॉबी की ताकत
केपी ओली खुलेआम चाइना की वकालत करता दिख रहा था। यह सब गुब्बारे मिलकर नेपाल की राजनीति कहो या देश में फटने के कारण बताए जा रहे हैं। अमेरिका का नेपाल की यूनिवर्सिटी में एक अच्छा प्रभाव है क्योंकि जब नेपाल के युवा इंस्टाबी आदि बैन के विरोध में खड़े हुए तो उन्हें अमेरिकी लॉबी से पूरा का पूरा समर्थन मिला। नेपाल में प्रोटेस्ट की शुरुआत से इसमें अमेरिका का सीधा हाथ भी बताया जा रहा था क्योंकि अमेरिका नेपाल पर चीन का प्रभाव खत्म करना चाहता है।
वहां मौजूद नेपाली संघ और अमेरिकी नेपाल हेल्पिंग सोसाइटी जैसे ऑर्गेनाइजेशन और अमेरिकी सरकार में शामिल लोगों ने नेपाल के यूथ लीडर्स के साथ मिलकर इस प्रोटेस्ट का स्ट्रक्चर तैयार किया था, जिसमें छोटे-छोटे बच्चों को स्कूली बच्चों को आगे
भारत के पड़ोसी देशों में तख्ता पलट का पैटर्न
कुल मिलाकर पिछले कुछ सालों का अगर इतिहास देखें तो भारत के सभी पड़ोसी देश एक-एक करके तख्ता पलट का शिकार हो चुके हैं। सभी देशों में पैटर्न एक ही रहा। अफगानिस्तान में तालिबान के कारण वहां के राष्ट्रपति अशरफ गनी को हेलीकॉप्टर से काबुल से भागते देखा था। इसके बाद वहां के राष्ट्रपति भवन में तालिबानी मौज मस्ती करते दिखे थे। म्यांमार में 2021 के सैन्य तख्ता पलट के खिलाफ बड़े पैमाने पर अहिंसक प्रदर्शन हुए जो बाद में हिंसक हो गए और देश में गृह युद्ध छिड़ गया जो अभी भी जारी है।
हिंसक प्रदर्शन गुटों और सेना के बीच लड़ाई जारी है। 30 लाख से ज्यादा लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा और 6500 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। 2022 में श्रीलंका में हुए आम लोगों के आंदोलन को भी “अरागला” कहा गया था, जिसमें राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और उनके परिवार की सत्ता का तख्ता पलट किया गया। राजपक्षे परिवार, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और उनके भाई प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने बड़े पैमाने पर विदेशों से कर्ज लिया जिसका इस्तेमाल आलीशान इमारतें बनाने और भ्रष्टाचार में हुआ।
आर्थिक संकट के कारण बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन हुए। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को इस्तीफा देकर भागना पड़ा, और आपने देखा होगा जनता वहां राष्ट्रपति भवन का सामान ले जाती दिख रही थी। बांग्लादेश में भी 2024 में सरकारी नौकरियों में कोटा सिस्टम के खिलाफ हुए छात्रों का आंदोलन जो धीरे-धीरे जमात के कट्टरपंथी मुल्लाओं के हाथ में चला गया, उसमें भी वहां हिंसक प्रदर्शन हुए। प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर भारत तक भागना पड़ा। जनता प्रधानमंत्री आवास में मौज मस्ती करती दिखाई दी।
शेख हसीना ने खुद कहा था कि अमेरिका उनसे एक टापू मांग रहा था। उसके इनकार करने के बाद अमेरिका ने दबाव बनाना शुरू कर दिया था। नेपाल के मामले में भी यही कहा जा रहा है कि नेपाल के प्रदर्शनों में कुछ भी अलग नहीं था। बताया जा रहा है कि अब नेपाल में राजशाही समर्थक पार्टी आरआरपी के नेता राजेंद्र लिंगदेन और कमल थापा नई सरकार बना सकते हैं।
क्या नेपाल में फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र लौटेगा?
सरकार बनी तो नेपाल की सबसे बड़ी त्रिभुवन यूनिवर्सिटी का प्रभाव रहेगा। अमेरिकन लॉबी के सपोर्ट वाले कुछ लोग भी सरकार का हिस्सा बन सकते हैं। लेकिन कुछ भी हो, जिस तरीके से 24 घंटे में नेपाल की सत्ता पलट दी गई, इस स्थिति को करीब से देखने वाले सवाल पूछ रहे हैं कि क्या यह एशिया का अरब स्प्रिंग पल है और क्या यह नई पीढ़ी के नेतृत्व के उभरने की शुरुआत है? क्या नेपाल फिर से राजा चुनेगा और क्या नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बनेगा? इन सवालों के जवाब आने वाला वक्त जरूर देगा।